संगी हो जोहार लओ

एक दिन में ओखर घर गेंव का हाल-चाल हे तेला पूछे बर,बाहिर में ओखर बाबु हा खेलत रिहिस,मेहा पुछेवं-‘कईसे रे गोंडुल कहाँ हे तोर पापा हा.’ गोंडुल कहिथे “पापा हा सुते हे.’ ‘काबर रे ?’ में पुछेवं. गोंडुल किहिस – ‘बुखार धर ले हवे.’ में कहेवं “बुखार धर लिस, काली त मोला कहत रिहिसे प्रकितिक चिकत्सा चालू कर दिया हूं,कहिके.’ गोंडुल कहिथे- ‘का हे अंकल अभी वो रोज रिसी असनान करत रिहिस न.’ ‘कईसे रे’ में पुछेवं,गोंडुल हा कहिते “रोज बिहिनिया ले चार बजे उठ के टंकी के ठंडा पानी मा नहावय तेखरे सेती निमोनिया धर ले हवय डाक्टर हा कहत रिहिसे.’ मेहा घर भीतरी में निगेवं ता खटिया मा पडे रहय. ‘आ भाई बईठ’ कहात हे,में पुचेवं-‘कईसे कर डरे गा.’ त कहत हे ‘कांही नई होय हे, थोकिन बुखार धरे हवे,बने हो जाही.’
काय बने हो जाही १५ दिन ले खटिया धरे रिहिस अऊ १० हज़ार पईसा ला डाक्टर मन हा गोली दवई मा चुहक दिस, अपन गोठ मा अडेच रहिथे,डेरी गोड के अंगठा मा घाव होगे, सबो झन ओला किहिसे,इलाज कराले गा,त वो हा कहे सब ठीक हो जाही सरीर हा अपने अपन ठीक करथे,जब अंगठा हा बस्साये ला धर लिस तभे डाक्टर करा जिस इलाज कराये बर,ले दे के ओखर गोड हा बांचिस,अईसन हमर पटवारी भईया के गोठ हे गा,काली कहत रिहिसे,अब महू ला डाक्टरी करे लागहि,पराकिरित चिकित्सा में अड़बड कुन जडी बूटी अऊ हवा पानी मा इलाज हो जथे तुमन मानौ नई, संगी हो काली पटवारी भईया के डाक्टरी ला देखबो, आज के कथा के इही मेर बिसराम हे.
आपके
गावंईंहा संगवारी
ललित शर्मा
अभनपुरिहा